Tuesday 7 August, 2007

हरियाणवी मखौल - मुँह दुक्खै स‌ै

एक बै फत्तू खेत म्ह रेडियो स‌ुणे था। रेडियो पै एक लुगाई बताण लाग री थी, बंबई मै बाढ़ आ गी, गुजरात मै हालण आग्या, दिल्ली म्ह... फत्तू नै देख्या पाच्छै नाका टूट्या पड़्या स‌ै, अर बाणी दूसरे के खेत म्ह जाण लाग रहया स‌ै। फत्तू छोंह म्ह आकै रेड़ियो कै दो लट्ठ मारकै बोल्या - दूर-दूर की बताण लाग री स‌ै, लवै नाका टूट्या पड़या स‌ै, यो बतांदे होए तेरा मुँह दुक्खै स‌ै।

शब्दार्थ:
लुगाई - औरत, हालण - भूकम्प, नाका - खेत में पानी रोकने के लिए बनाई गई मिट्टी की बाढ़, छोंह - गुस्सा, लवै - नजदीक

8 टिप्पणियाँ:

Gyan Dutt Pandey said...

श्रीश, पोस्ट के शुरूमें यह लिखा करो कि जिसे स्पॉण्डिलाइटिस की तकलीफ है वे ये पोस्ट न पढ़े! :)
हंस-हंस कर गर्दन में दर्द हो गया. शायद हरयाणवी भाषा का कमाल है यह! :)

mamta said...

हा-हा-हा !!
मजा आ गया।

संजय बेंगाणी said...

भई हरयाणवी का मजा ही कुछ और है.

खुब हा हा ही ही की.

Sanjay Tiwari said...

हर हफ्ते एक बार चौपाल तो लगा ही दिया करो श्रीश बाबू. बहुत अच्छा.

ePandit said...

@ज्ञानदत्त पाण्डे,

अगर कुछ और स‌ाथी अनुरोध करें तो कर देंगे जी। :)

वैसे हरियाणवी का कमाल तो है ही, ये भाषा हास्य-व्यंग्य स‌े भरपूर है।

@ममता,

खुशी हुई जानकर। :)

@स‌ंजय बेंगाणी,

स‌ही कहते हैं आप, किसी दिन फुरसत स‌े इस पर लिखेंगे।

@स‌ंजय तिवारी,

कोशिश करुँगा स‌ंजय भाई, बाकी आप आते रहिएगा।

Rajan said...

bahut badhiya

Anonymous said...

शिरीष भाई, कसम ते मजा ऐ आ गया पूरा चिटठा पड़ के तो. मैं वैसे ब्लागस्पाट मैं धयान नही दिया करदा, पण पहली बार मन होया के जवाब दिया जावे. आपने बोहोत बोहोत मुबारक हो और मेरा धन्यवाद आपने जो यो चिटठा अपने सुरु करया.

Anil Kumar said...

भाई, मैं बोल्या के जो बोल्ली सुण सुण के जी खुस हो ज्यावै, वा बोल्ली सै हरियाणवी। बेरा ना ब्हार के लोग हरियाणवी नै काम्मल तरिया समझदे कोन्या?

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